Monday, February 8, 2010

सूचना का अधिकार अधिनियम २००५


लेखक: चुन्नीलाल जी,
सहयोगी, सलाहकार एवं लेखक,
भारत नव निर्माण (Evolving New India)

आज दिनाँक ०६ फरवरी २०१० को सूचना का अधिकार अधिनियम २००५ का तीन दिवसीय कैंप संपन्न हुआ। यह कैंप जिलाधिकारी लखनऊ के परिषर में आशा परिवार और जनांदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के बैनर तले सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा ०४ फरवरी २०१० से ०६ फरवरी २०१० तक आयोजित किया गया था। इस कैंप का मुख्य उद्देश्य यह था कि आम जनता जो सरकारी विभागों से अपने हक़ को जानने वा पाने के लिए परेशान रहती है वह सूचना का अधिकार नियम २००५ का प्रयोग करके प्राप्त कर सकती है। वह अपने कार्यों की जानकारी, अपने से जुड़े उन तमाम दस्तावेजों की स्थिति जो उसने विभागों को इस आशय से दिया था कि निश्चित समय में इन पर कार्यवाही होगी और हमारा हक़ हमें प्राप्त हो जायेगा, पता कर सकती है ।

इस तीन दिवसीय कैंप में करीब ३५० लोगों ने जानकारी के साथ आवेदन पत्रों को तैयार करने के विषय में जानकारी प्राप्त की । इस कैंप में लोगों को जानकारी देने के हिसाब से आवेदन बनाने का कार्य किया गया । इसमें तमाम विभागों से सम्बंधित मामले सामने आये जैसे - विधवा पेंसन के फार्म लोगों ने कई साल पहले भरे थे लेकिन उसका जवाब अभी तक नहीं मिला । और तो और उनका फार्म अब कहाँ है ? यह भी कोइ बताने वाला नहीं । बड़ी मुश्किल से ये लोग अपना आवेदन समाज कल्याण विभाग तक पहुंचा पाते हैं क्योंकि उसमें की जो फार्मेलिटीज है उन्हें पूरा करने में तमाम खर्च के अलावा बहुत दौड़ - धूप करनी पड़ती है । तब जाके कहीं फार्म जमा करने की नौबत आती है ।यह करना एक ऐसे आदमी के लिए बहुत मुश्किल का काम है जिसे खाने के लिए लाले पड़े हों। इसी तरह से सरकारी विभाग से रिटायर कर्मचारी कई साल से चक्कर लगाते हैं कि मेरी पेंशन समय से मिल जाये और प्रमोशन के हिसाब से मिले। इसके लिए उन्होंने विभाग के छोटे कर्मचारियों से लेकर बड़े आधिकारियों तक आवेदन किया। लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ। अब हार-थक कर बैठ चुके हैं ।इसी तरह का मामला है कि एक वरिष्ठ लिपिक सिविल कोर्ट लखनऊ में कर्मचारी थे ।बेचारे बीमारी के शिकार हो गए और अपना इलाज मेडिकल कालेज से लेकर बड़े-बड़े अस्पतालों में कराया। ठीक तो हो गए लेकिन जितनी बीमारी में तकलीफ नहीं थी उतनी भाग- दौड़ करके अब परेशान हैं। क्योंकि उन्हें मेडिकल खर्च नहीं मिल पा रहा है। जिसको प्रार्थना पत्र देते हैं, एक महीने बाद जाते हैं तो पता चलता है कि उनका प्रार्थना पत्र ही गायब हो चुका है । कोई अपनी भर्ती प्रक्रिया को लेकर रो रहा है। एक सज्जन ने १९७७ में उत्तर रेलवे में सफाई कर्मीं के पद के लिए आवेदन किया था । उनका साक्षात्कार भी हुआ था और मेरिट लिस्ट में नाम भी आ गया । लेकिन बेचारे अभी भटक रहे हैं । उनसे कम नंबर पाने वालों और साक्षात्कार न देने वालों को नौकरी मिल गयी और बराबर तनख्वाह भी उठा रहे हैं । उन्हें क्यों नौकरी नहीं मिली ? यह उनकी समझ से परे है। वह जानना चाहते हैं कि आखिर ऐसा कैसे हुआ ? मेरा नाम मेरिट लिस्ट में आने के बाद भी मैं खाली बैठा हूँ । मुझे नियुक्ति क्यूं नहीं मिली ? मुझसे कम नंबर पाने वाले कैसे नियुक्ति पा गए ?

इन सब परेशानियों को जानने और अपने हक़ की लड़ाई लड़ने में सूचना का अधिकार अधिनियम २००५ बड़ा कारगर साबित होता है। यह जानने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी । जमकर जानकारी ली । इससे उनका इतना विश्वास हो गया कि चलो अब अधिकारी यदि कुछ नहीं भी करेंगे तो सूचना देने के लिए बाध्य तो होंगे ही । कम से कम यह तो पता चल जाएगा कि हमारा फार्म कहाँ है ? और उस पर क्या कार्यवाही की गयी है ? मेरा काम कि कारणों से रुका है ? यह काम कब तक होने की सम्भावना है ? अब कोई अधिकारी ज्यादा दिनों तक परेशान नहीं कर पायेगा । वह सूचना देने में बहाना नहीं कर पायेगा।

लोगों ने यह सब जानकारी पूर्णतया सूचना के अधिकार अधिनियम २००५ की धाराओं जैसे - ६(१), ६(३) समेत प्राप्त की । सूचना का अधिकार अधिनियम २००५ में जो धरा ६(१) है वह सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदन देने के लिए होती है, जिसके तहत आवेदन किया जा सकता है । धारा ६(३) के तहत अधिकारी किसी भी विभाग से सूचना लाकर आवेदक को देने के लिए बाध्य होता है । वह यह बहाना करके आवेदन अस्वीकार नहीं कर सकता कि यह सूचना या इसका कुछ भाग मेरे विभाग से सम्बंधित नहीं है। इन तमाम जानकारियों के अभाव में कभी-कभी आवेदक का आवेदन विभागीय अधिकारी यह कह कर वापस कर देते थे कि अरे ! यह सूचना तो हमारे विभाग से सम्बंधित नहीं थी । जिस विभाग से सम्बंधित है आप उसमें आवेदन करें ।

उपरोक्त जानकारियों को बताते हुए और इसमें जुड़े कार्यकर्ताओं के संपर्क सूत्र देते हुए, लोगों को जानकारी उपलब्ध कराई गयी । जो लोग आवेदन नहीं बना पाते थे उनको आवेदन बनाना बताया गया । इसको हिन्दुस्तान दैनिक अखबार ने ५ फरवरी २०१० के अंक में प्रकाशित भी किया। इसमें मुख्य रूप से सामाजिक क्षेत्रों से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। चुन्नीलाल (जिला समन्वयक , आशा परिवार ), आशीष कुमार, उर्वशी जी , नसीर जी (कार्यकर्ता, आशा परिवार),मानव मूल्य रक्षा समिति की अध्यक्षा श्रीमती लक्ष्मी गौतम जी वा सामाजिक कार्यकर्ता, मैग्सेसे पुरष्कार से सम्मानित, एन ए पी एम के राष्ट्रीय समन्वयक डाँ संदीप पाण्डेय जी ने मुख्य रूप से भाग लिया। विशेष जानकारी देने के लिए और सहयोग के लिए सभी का धन्यवाद।
भवदीय, चुन्नीलाल, (जिला समन्वयक, आशा परिवार)
०९८३९४२२५२१
email :chunnilallko@gmai।com


*Photo by : Dinesh Chandra Varshney for Bharat Nav Nirman Only

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