Friday, December 25, 2009

पागल संसार


लेखक- रजनीश शुक्ला
दिन भर अपने तेज से सम्पूर्ण संसार को प्रकाशवान करने के उपरान्त सूर्यदेव के आराम का वक़्त हो चला था । संध्या रानी पश्चिम दिशा के द्वार पर उनका स्वागत करने के लिए आ चुकी थी । आकाश में पक्षियों का अलग - अलग झुण्ड अन्धेरा होने से पहले अपने अपने घर लौटने के लिए आतुर दिख रहा था । पीपल के पेड़ के नीचे वाले छोटे मंदिर से आ रही घंटे की आवाज़ यह संकेत दे रही थी कि संध्या पूजा का समय हो चुका है । लेकिन बस्ती से थोड़ी दूर में स्थित विशालकाय मैदान में खेल में मग्न आठ-दश बच्चों की टोली को देख कर कोइ यह नहीं कह सकता था कि अन्धेरा होने वाला है । मैदान के एक कोने में एक कमरे का खपरैल वाला छोटा सा घर था । घर में रहने के लिए एक अन्धेढ़ उम्र की बुढ़िया के अलावा और कोइ न था । दादी माँ हम लोंगों के यहाँ आने के पहले से मैदान में कुछ ढूंढ रही हैं, खेल कर घर लौटने से पहले एक बच्चा अपने अन्य साथियों से यह बात बोलता है । लगता है उनकी कोई चीज इस मैदान में कहीं गिर गयी है कहकर दूसरे बच्चे ने भी पहले बच्चे की बात का समर्थन किया । सहानुभूति और मदद की भावना दिल में लिए बच्चों का यह समूह परेसान दिख रही दादी माँ के पास पहुंचा । एक बच्चे ने कहा - दादी माँ ! आप बहुत देर से मैदान के चारों ओर घूम-घूम कर कुछ ढूंढ रहीं हैं, हमें बताओ हम सब मिलकर ढूँढने में मदद कर देते हैं । दादी माँ ने कहा - हाँ बेटा ! लाठी को टेक- टेक कर चलने से एक तो कमर दुखने लगी है और ऊपर से वृद्धावस्था की वजह से आँखों में अब वो तेज भी नहीं रहा । तुम लोग सब मिलकर मदद करो तो शायद मेरी खोयी सुई मिल जाये । मैं तो सुबह से ढूंढ ढूंढ कर परेसान हो गयी हूँ, पर चीज है कि मिलने का नाम नहीं ले रही । एक बच्चे ने कहा- दादी माँ! मैदान तो बहुत बड़ा है और सुई बहुत छोटी । आप हमें यह बताईये कि सुई मैदान के संभवतः किस भाग में गिरी होगी ? पूरे मैदान में न ढूंढ कर हम सब मिलकर उस जगह में ढूंढें, जहाँ इसके गिरने की सम्भावना है । दादी माँ ने कहा - बेटा ! सुई तो घर के अन्दर गिरी है , लेकिन अन्दर इतना अन्धेरा है कि मेरा मन तैयार नहीं कि उसे मैं अन्दर ढूँढू । मैदान की रौनकता से मन मंत्र मुग्ध है । यहाँ सुई ढूँढने का दिल करता है । घर के अन्दर का अंधेरापन मन में भय पैदा करता है । दादी माँ की बात बच्चों को बड़ी अजीब लगी । एक ने कहा - जब सुई अन्दर गिरी है तो अन्दर ही ढूँढने से मिलेगी । बाहर ढूढने से कोई फायदा नहीं । हमें घर के भीतर ले चलो, हम सब मिलकर ढूढ़ते हैं । दादी माँ ने कहा - ढूंढना है तो बाहर ही ढूंढो । अन्दर इतना अन्धकार है कि वहाँ तुम्हारी समझ काम नहीं करेगी । दादी माँ की बात सुनकर बच्चे आपस में कहने लगे - उम्र के इस पड़ाव में ये अपनी बुद्धि खो चुकी हैं । पागल को समझाने से क्या लाभ ? बच्चों के मुह से अपने लिए पागल संबोधन सुनकर दादी माँ को दुःख हुआ । उन्होंने कहा - बच्चों ! मैं पागल नहीं हूँ । यदि मैं पागल हूँ तो यह सारा संसार पागल है । मैंने तुम लोगों से वही बात कही है जैसी इस संसार की गति है । भगवान हम सबके अन्दर निवास करते हैं । हम सब बाहरी जगत में इधर- उधर तीर्थ स्थलों में ढूंढते फिरते हैं । हमारे अन्तः करण में इतना अन्धकार है कि हम सब हर मानव जाति के आत्मा में निवाश करने वाले परमात्मा के दर्शन नहीं करना चाहते । आत्मा भी परमात्मा का एक अंश है लेकिन वाह रे पागल संसार! तू मानव जाति की सेवा तो दूर , इसे भांति - भांति प्रकार से जाने अनजाने में दुःख पहुंचाकर देव स्थलों में भगवान को ढूंढता फिरता है । धार्मिक कर्मकांडो में लोग दिल खोलकर पैसा खर्च करते हैं, लेकिन किसी गरीब की बेटी की शादी में कोई आर्थिक सहयोग नहीं करता । मंदिरों में भगवान के नाम पर बहुमूल्य वस्तुओं की भेंट चढ़ाने के बाद लोगों को परम संतोष की अनुभूति होती है, लेकिन मंदिर के बाहर किसी अपाहिज और भूंखे किसी बूढ़े को भरपेट भोजन करने में वह संतोष कहाँ ? लोग भगवान से अपने और अपने परिवार की लम्बी आयु की दुआ नेत्र में आंसू भरकर मांगते हैं । एक असहाय बीमार के आंसू पोछने के लिए कोई उसका इलाज नहीं कराता । बच्चों मै पागल नहीं हूँ । मै तो अपनी चीज इस विशालकाय मैदान में ही ढूंढूंगी । यहाँ मेरा मन लगता है । तुम लोग अपने - अपने घर जाओ । दादी माँ की बात बच्चों को कितनी समझ में आयी, यह तो कहना मुस्किल था, पर बच्चे अपने - अपने घर को लौट गए ।

Wednesday, October 14, 2009

चर्चा : क्या ओबामा नोबेल का सही हकदार ?



रुपेश पाण्डेय :

कई बार nobel expectations पर दिया जाता है । वो young है और उसके plans बहुत innovative है। उसके पास ४ साल का मौका है । हमेशा साप निकल जाने पर लकीर पीटना समझदारी नही । दुनिया के 6 अरब लोगो को अब उससे उम्मीद है । यदि नोबेल कमेटी ने थोडी तत्पर्ता दिखाय़ी होती तो महात्मा गान्धी नोबेल से वन्चित नही रहते। मतलब शान्ति के मसीहा को नोबल नही मिला । यह आश्चर्यजनक है। किन्तु नोबेल प्राइज़ का रुल है कि मरने के बाद नही देते, मरने के पहले कोई recognize नही कर पाया । मन्डेला उनके पदचिन्हो पर चलकर नोबेल पा गये गान्धी जी को नही मिलना बहुत बडा आश्चर्य है । जिसने दुनिया को एक नयी सोच दी उसको नोबेल नही मिला। पहले तो लोग मानते थे कि "india is country of snake charmers" मतलब की सपेरो और करतब दिखाने वालो का देश। कलाम ने बडा काम किया है अभी उनको भी नही मिला। indegeneous chryogenic engine बनाया । दुनिया मे सिर्फ़ 5 countries के पास ये capability है। खुद का रोकेट launching station भी 5 countries के पास ही है।
1) मुश्किल है की ओबामा आगे आने वाले समय मे कोई ऐसा काम करे कि नोबेल पुरश्कार कमेटी को सोचना पडे की जल्दबाजी मे दे दिया गया, नोबेल के बाद तो बहुत मुश्किल
2 ) अभी युद्ध के चान्स कम है
3 ) वो मुश्लिम है, इसलिए मिडिल ईस्ट मे उसके कट्टर विरोधी नही है ।
4) black है इसलिए africa मे सम्मानित है, kenya का है infact so good candidate जिस पर दाव लगाया जा सकता है ।
हमेसा जरूरी नही कि nobel 80 साल वालो को ही मिले ,काम करने के बाद । यहा इसको पता है कि क्या करना है । भारी दबाब होगा और सच कहा जाये तो हम लोगो मे से कई लोग नही जानते की मन्डेला ने क्या किया, याशिर अराफ़ात ने क्या किया, अल गोरे ने क्या किया ये लोग famous तब होते है जब नोबेल मिल जाता है.....फ़िर हम अपना gk gain कर लेते है और भूल जाते है कि क्यू मिला । यहा हम नजर रखेगे और देखेगे वह कर क्या रहा है । हम Analyse कर पायेगे , सफ़ल हुआ तो भी और नही हुआ तो भी । nobel committe कभी भी rule change करके वापस ले सकती है prize ,सोचो वह कितना shamefull होगा । अल गोरे को environmental concern के लिये मिला ।जो मन्डेला ने किया उसका foundation गान्धी जी डालकर आये थे ।कभी- कभी peace war से भी आती है इसलिये अहिन्सा ही एक मात्र हथियार नही । Terrorist को खतम करना है। Peace लाना है । उनको खत्म करना होगा और विचारधारा को बदलना होगा। य़ासिर अराफ़ात ने युद्ध का सहारा लिया । diplomatic level पर बहुत कुछ होता है ।

रजनीश शुक्ला:

ओबामा अभी young है। कल को कुछ गलत कर गये तो नोबेल का क्या सम्मान । पाकिस्तान मे drone हमले कराये गये ओबामा के शाशन मे तो पता चला चन्द आतन्कअवादियो को मारने के चक्कर मे कई बेकसूरो की जान गयी ।हमले पूरे के पूरे गान्व मे हुए ना कि केवल आतन्कवादी शिविर मे । उन घरो के सदस्य जिनके रिस्तेदार मरे गये ,अनाथ बच्चे जब सुनेगे तो सोन्चेगे दुनिया मे कुछ भी होता है, क्या मेरे पिता का कातिल Nobel का हकदार है ? एक दोशी को सजा देने के लिये १०० निर्दोश ना मारे जाये । अब बच्चे मारे गये वो तो आतन्की नही थे । यह दर्द हम नही समझ सकते, वो जिनके अपने मारे गये वही समझेगे और वही हन्सेगे कि क्या दुनिया है जिसने मेरे अब्बा जान को मारा और मेरा घर उजाड दिया उसे नोबेल । वही आतन्कवादी बनेगा । उसे उकसाया जायेगा और फिर एक और ११ सितम्बर होगा । यही चलता रहेगा , यही दुनिया है । कई ओसामा बिन लादेन तैयार होन्गे । य़े आतन्क को खतम करने का तरीका भी अजीब है कि जीवित आतन्की को खतम करो और एक भले आदमी के भीतर आतन्कवाद का बीज बो दो और जिसने ये सब किया उसे शान्ति का नोबेल ।

Wednesday, September 2, 2009

मुखिया रामदीन


Written By : रजनीश शुक्ला ,रीवा (म. प्र.)

गांवों की पंचायती राज व्यवस्था की पोल खोलता एक व्यंग्य इसमें मुखिया रामदीन को एक ऐसे दीमक के रूप में चित्रित किया गया है जो गांव की संस्कृति को चट कर रहा है

मुखिया रामदीन मानवाधिकार के सिद्धांतों को नहीं मानते उनका मानना है कि मानवाधिकार वाले सामाजिक प्राणी नहीं होते वे कहते हैं ये मानवाधिकार वाले बड़ी बड़ी किताबें पढ़कर कानून बना देते हैं अगर ये सामाजिक जीव होते तो ऐसे नियम कतई न बनाते जिनसे समाज कि नब्ज पर पकड़ कमजोर पड़ती हो यह बात सच है क्योंकि मुखिया रामदीन सामाजिक मामलों के विशेषज्ञ हैं मध्य भारत के विंध्यांचल पर्वत की गोद में बसे एक गाँव के उद्धार का ठेका उन्होंने तभी से ले लिया जब गांव के जमींदार और बुजुर्ग होने के नाते मुखियापद का भर उन्हें सौंपा गया ऐसा नहीं है कि आधुनिकता से उन्हें कोई परहेज है बस यह आधुनिकता समाज के लोंगों को इतना प्रभावित न कर दे कि उनके निर्णयों का प्रभाव कम हो जाये उन्होंने हमेसा से ही टेलीविजन का विरोध किया है वे कहते हैं इससे लोग जागरूक कम और गुमराह ज्यादा होते हैं गाँव की पंचायतों में सुनायी जाने वाली सजा का पक्ष लेते हुए वे कहते हैं शहरी अदालतें शहर और गाँव के आदमी के बीच में फर्क नहीं समझतीं और एक सा निर्णय सुना देती हैं जो उचित नहीं है जिस तरह गांव और शहर में फर्क है उसी तरह सजा में फर्क होना लाजिमी है गांव के लोग मेहनती व कठोर होते हैं इसलिए सजा भी उनके लिए कठोर होनी चाहिए गांव वालों को जिस तरह अपने भले बुरे का फर्क समझ में नहीं आता उसी तरह सजा चाहे कम हो या ज्यादा उन्हें फर्क नहीं पड़ता मुखिया रामदीन कि ख्याति अब केवल अपने गांव तक ही सीमित न रही पडोसी गांवों में भी उनके कम के तौर तरीकों की खूब चर्चाएँ होने लगी आखिर उन्हें एक आधुनिक गांव की पंचायत का एक पत्र मिला पत्र में लिखा था यों तो हमारे गांव में आधुनिकता का विकाश हुआ है पर हमारे गांव कि पंचायत आपके गांव की पंचायत की तरह सक्षम नहीं है और कई मामलो में निर्णय नहीं ले पाती इस वजह से ग्रामीण जन पंचायत के खिलाफ सच बोलने का साहस दिखा रहे हैं यही नहीं वे मामले कि गंभीरता के अनुसार शहरी अदालतों तक पहुँच जाते हैं आपसे अनुरोध है कि आप हमारें गांव आकर यहाँ की पंचायत में सक्षमता लायें पत्र से प्रभावित होकर मुखिया रामदीन ने आधुनिक गाँव का निमंत्रण फ़ौरन स्वीकार कर लिया नए गांव पहुचते ही उन्होंने सबसे पहले पंचायत में सरकारी शराब की दुकान खोलने का प्रस्ताव रखा इस पर एक पंच ने कहा शराब पीने से तो लोग और भी अकर्मण्य और बेकार हो जायेंगे सारे पंच लोग मुखिया रामदीन की ओर उत्सुकता से देख रहे थे की वे इसका क्या जवाब देतें हैं मुखिया रामदीन ने समझाया देखो यदि लोग शराब पियेंगे तो घर में खाने को नहीं होगा घर में खाने को नहीं होगा तो लोग काम करेंगे जैसा मैं कहता हूँ वैसा करो
आखिर आधुनिक गांव कि पंचायत ने शराब कि दुकान का प्रस्ताव पारित कर दिया कुछ ही दिनों में इस निर्णय का प्रभाव देखने को मिला लोग सचमुच काम की गुहार लिए साहूकारों के घर के बाहर कतार लगाने लगे काम न मिलने पर आधी मजूरी में ही काम करने को तैयार मिले नए गांव कि पंचायत मुखिया रामदीन कि इस सूझ-बूझ से चकित थी इस महान विभूति के दर्शन के लिए जन समूह उमड़ पड़ा कि आखिर वह कौन है जो लोंगों को शराबी बनाकर उनमे कर्मठता ला देता है मुखिया रामदीन ने जन समूह को बताया कि हमारे गांव में कम मजदूरी में भी कामगीरों की कोई कमी न होने का यही रहस्य है पंचायत की अगली बैठक में मुखिया रामदीन का आसन अपेक्षाकृत ऊँचा था सभी पंच आपस में खुसुर फुसुर कर रहे थे कि इस बार उनकी बुद्धि की तरकस से कौन सा तीर निकलेगा तभी एक अधेड़ सी उम्र का आदमी कुछ साहस जुटाकर बोला कि शराब पीने से घरों में कलह पैदा हो गया है आदमियों द्वारा औरतों पर मारपीट की घटनाएँ हो रही हैं घर के लोगों में तनाव इस तरह बढ़ गया है की लोग रात रात भर सो नहीं पाते मुखिया रामदीन के लिए यह एक परीक्षा की घड़ी थी सभी लोग उनकी तरफ उत्सुकता से देख रहे थे
मुखिया रामदीन बोले कलह और मारपीट की घटनाएँ होने से लोग आये दिन पंचायत की बैठक बुलाकर न्याय की गुहार लगाते हैं लोगों का पंचायत के प्रति विश्वास बढा है जो कि एक अच्छा संकेत है सभी पंच लोग मुखिया रामदीन की इस तर्क शक्ति से प्रभावित हुए मुखिया रामदीन आंगे बोले पर अनिद्रा के रोग का भी उपाय है निंदा रस गांव के किसी भी व्यक्ति की जी भर कर निंदा कीजिये बढा चढा कर कीजिये आत्मिक संतुष्टि मिलने तक कीजिये यह औषधि अनिद्रा रोग के लिए रामबाण है चाहे कोई जिन्दगी से कितना भी परेशान क्यूँ न हो निंदा रस की खुराक लेने के बाद उसे गहरी नीद आना तय है एक पंच ने रामदीन के चरण पकड़ लिए वह बोला गुरुदेव आप कहाँ थे मैं सदैव आपके श्री चरणों में पड़ा रहना चाहता हूँ मुखिया रामदीन ने समझाया हमारे गाँव में लोंगों के अच्छे स्वास्थ का यही कारण है तुम लोग भी यह फार्मूला सीख लो फिर देखो लोगो के स्वास्थ में कैसे सुधार होता है इसी तरह कुछ दिन और बीते तब मुखिया रामदीन को लगा की उनका आधा काम तो हो चूका है बस यहाँ कि पंचायत को यह प्रशिक्षण देना बाकी है कि लोंगों पर निर्णय जबरन किस तरह लादें गांव का एक कुलीन लड़का किसी अनपढ़ लडकी से प्रेम का वास्ता देकर विवाह करना चाहता था लड़के के घर वालों को यह मंजूर नहीं था घर वालों ने लड़के को अपनी तरफ से समझाने कि पूरी कोशिश की लड़का एजुकेटेड था उसने अपनी मर्जी का जीवन साथी चुनने को अपना हक़ बताया आखिर बात पंचायत तक पहुँची मुखिया रामदीन ने नमूने के तौर पर इस केस की सुनवाई का फैसला किया उन्होंने कहा गाँव के चार-पांच ऐसे लड़के बुलाये जांय जो चोरी करते हों ,जुआरी और शराबी हों अगले दिन पांच नौजवान मुखिया रामदीन के सामने लाये गए वे नौजवानों को देख बहुत प्रशन्न हुए उन्होंने नौजवानों से पूंछा कि तुम्हारा अमुक लड़की के साथ प्रेम सम्बन्ध है कि नहीं नौजवानों ने कहा साब! हम इस लड़की को जानते तक नहीं प्रेम सम्बन्ध तो बहुत दूर की बात है मुखिया रामदीन पर नौजवानों के जवाब से कोई फर्क नहीं पड़ा उन्होंने पुनः पूंछा लड़की को जानते नहीं सो तो ठीक है पर तुम्हारा उससे प्रेम सम्बन्ध है कि नहीं । पास में खडा पंच की हैसियत का एक व्यक्ति मुखिया रामदीन कि इस तर्क शक्ति से बहुत प्रभावित हुआ पांचो नौजवान हँसे और उन्हें लगा कि यह जिरह कर रहा व्यक्ति पागल है मुखिया रामदीन ने अपना रवैया बदलते हुए कड़े शब्दों में कहा हंसो मत ! तुम लोंगों ने जितनी चोरियां की हैं सब की खबर है अगली पंचायत की बैठक में तुम सबको गांव से निकालने का आदेश सुनाया जा सकता है नौजवान घबरा गए मुखिया रामदीन के पैर पकड़ कर गिडगिडाने लगे हमें गांव में रहने दिया जाय मुखिया रामदीन थोड़े शांत होकर बोले तो तुम लोग यह मानते हो की तुम्हारे उस अमुक लडकी से प्रेम सम्बन्ध हैं नौजवान बोले देखो साब!उस लडकी का हम सभी से साल दो साल से चक्कर चल रहा है मुखिया रामदीन मुस्कुराकर बोले बहुत खूब ! बस तुम लोंगों को यही बात कल के पंचायत में बोलनी है पास में खडा पंच बेहोस हो गया होश आने पर मुखिया रामदीन के चरणों से लिपटता हुआ बोला-हे महापुरुष आप इतने दिनों तक कहा थे मैंने अपने जीवन में आप जैसा महान्याई कभी नहीं देखा मुखिया रामदीन ने कहा चलो हटो पैर छोडो और मुझे कल की पंचायत की रूपरेखा तय करने दो एक पंच ने मुखिया रामदीन से कहा हुजुर हमारी तो बड़ी आफत है गांव के भले लोग आकर कहते हैं कि जब लड़का और लड़की शादी के लिए तैयार हैं तो पंचायत को क्या परेशानी है यह बात हमारे गले भी किसी तरह नहीं उतरती कि दोनों कि जिन्दगी क्यूं बर्बाद की जाय मुखिया रामदीन बोले -उन सभी भले लोंगों से कह दो जो कुछ हो रहा है सब ऊपर वाले कि मर्जी से हो रहा है यह उनका भाग्य है पंचायत भी उसी तरह का निर्णय सुनाती है जैसा ऊपर वाला चाहता है हम सब तो माध्यम मात्र हैं यह भाग्य के कारण का जुमला इन गांव वालों को सिखा दो हमारे गांव में लोग इस फार्मूले को अपनाकर सब कुछ ईस्वर के भरोसे छोड़ कर हाथ में हाथ धरे बैठे रहते हैं बड़ा सा बड़ा नुकसान होने पर भी ईस्वर कि मर्जी मानकर संतुस्ट रहते हैं हमारे गांव कि खुशाली का यही रहस्य है अगले दिन पंचायत में मुखिया रामदीन ने नौजवानों के बयानों को आधार बना कर फैसला सुनाया कि यदि लड़का इस लड़की से विवाह करता है तो लड़के की बहन का रिश्ता जो की गांव के किसी लड़के तय किया जा चुका है ,टूटा माना जायेगा साथ ही लड़के के माँ बाप को यह गांव छोड़ कर जाना होगा पंचायत ख़त्म हो चुकी थी लोग अपने-अपने घर वापस जा चुके थे अगले दिन पंचायत की आपातकालीन बैठक बुलाई गयी मुखिया रामदीन को नहीं बुलाया गया बैठक में पंच लोग चिल्ला रहे थे- सारे पढ़े लिखे लोग गांव छोड़ कर जा रहे हैं गांव से आधुनिकता गायब हो रही है गरीबी और लाचारी बढ़ती जा रही है लोगों के बीच में कलह इतना बढ़ गया है कि आये दिन मारपीट की घटनाएं हो रहीं हैं अगले दिन आधुनिक गांव के सरपंच ने मुखिया रामदीन को बुलाया मुखिया रामदीन ने देखा कि वो काफी परेशान थे लगता है कई रातों से सोये नहीं हैं गांव के मुखिया ने रामदीन से हाँथ जोड़ कर कहा - आपने हमारे गांव आकर अपनी सेवाएँ प्रदान कीं इसके लिए हम आपके बहुत आभारी हैं हम आपको अपना हितैषी समझते थे पर आपने हमारे साथ शत्रुवत व्यवहार किया है हमारे आधुनिक गांव कि रौनक आधी खत्म हो चुकी है आप कुछ दिन और यहाँ रहे तो पूरी तरह नष्ट हो जायेगी सारे पढ़े लिखे लोग गांव छोड़ कर जा रहे हैं गांव से आधुनिकता गायब हो रही है गरीबी और लाचारी बढ़ती जा रही है लोगों के बीच में कलह इतना बढ़ गया है कि आये दिन मारपीट की घटनाएं हो रहीं हैं कृपया करके आप अपने गांव वापस लौट जाईये और कभी दुबारा इस गाँव में कदम न रखें मुखिया रामदीन रात होते ही अँधेरे में अपना सामान उठाकर अपने गांव वापस लौट आये

Thursday, August 27, 2009

Lesson of the Square Watermelon

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Another story before comming on problems and their solution

Japanese grocery stores had a problem. They are much smaller than their US counterparts and therefore don’t have room to waste. Watermelons, big and round, wasted a lot of space. Most people would simply tell the grocery stores that watermelons grow round and there is nothing that can be done about it. That is how I would assume the vast majority of people would respond. But some Japanese farmers took a different approach. If the supermarkets wanted a square watermelon, they asked themselves, “How can we provide one?” It wasn’t long before they invented the square watermelon.

The solution to the problem of round watermelons wasn’t nearly as difficult to solve for those who didn’t assume the problem was impossible to begin with and simply asked how it could be done. It turns out that all you need to do is place them into a square box when they are growing and the watermelon will take on the shape of the box.



This made the grocery stores happy and had the added benefit that it was much easier and cost effective to ship the watermelons. Consumers also loved them because they took less space in their refrigerators which are much smaller than those in the US meaning that the growers could charge a premium price for them.



What does this have do with anything besides square watermelons? There are a few lessons that we can take away from this story..

Note: Source of the story is unknow. It came to me thru mail chain and I am posting here as it can help us while suggesting solutions.

Difference between Focusing on Problems and Focusing on Solutions

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Case 1:-


When NASA began the launch of astronauts into space, they found out that the pens wouldn't work at zero gravity (ink won't flow down to the writing surface). To solve this problem, it took them one decade and $12 million. They developed a pen that worked at zero gravity, upside down, underwater, in practically any surface including crystal and in a temperature range from below freezing to over 300 degrees C.


And what did the Russians do…?? They used a pencil.



Case 2:-


One of the most memorable case studies on Japanese management was the case of the empty soapbox, which happened in one of Japan 's biggest cosmetics companies. The company received a complaint that a consumer had bought a soapbox that was empty. Immediately the authorities isolated the problem to the assembly line, which transported all the packaged boxes of soap to the delivery department. For some reason, one soapbox went through the assembly line empty. Management asked its engineers to solve the problem. Post-haste, the engineers worked hard to devise an X-ray machine with high-resolution monitors manned by two people to watch all the soapboxes that passed through the line to make sure they were not empty. No doubt, they worked hard and they worked fast but they spent whoopee amount to do so. But when a rank-and-file employee in a small company was posed with the same problem, he did not get into complications of X-rays, etc., but instead came out with another solution.


He bought a strong industrial electric fan and pointed it at the assembly line. He switched the fan on, and as each soapbox passed the fan, it simply blew the empty boxes out of the line.




MORAL: - "Always look for simple solutions. Devise the simplest possible solution that solves the problems. Always focus on solutions & not on problems"


Note: The writer of story is unknown. It came to me through mail chain and I am posting here to share it with all of you :-))