रुपेश पाण्डेय :
कई बार nobel expectations पर दिया जाता है । वो young है और उसके plans बहुत innovative है। उसके पास ४ साल का मौका है । हमेशा साप निकल जाने पर लकीर पीटना समझदारी नही । दुनिया के 6 अरब लोगो को अब उससे उम्मीद है । यदि नोबेल कमेटी ने थोडी तत्पर्ता दिखाय़ी होती तो महात्मा गान्धी नोबेल से वन्चित नही रहते। मतलब शान्ति के मसीहा को नोबल नही मिला । यह आश्चर्यजनक है। किन्तु नोबेल प्राइज़ का रुल है कि मरने के बाद नही देते, मरने के पहले कोई recognize नही कर पाया । मन्डेला उनके पदचिन्हो पर चलकर नोबेल पा गये गान्धी जी को नही मिलना बहुत बडा आश्चर्य है । जिसने दुनिया को एक नयी सोच दी उसको नोबेल नही मिला। पहले तो लोग मानते थे कि "india is country of snake charmers" मतलब की सपेरो और करतब दिखाने वालो का देश। कलाम ने बडा काम किया है अभी उनको भी नही मिला। indegeneous chryogenic engine बनाया । दुनिया मे सिर्फ़ 5 countries के पास ये capability है। खुद का रोकेट launching station भी 5 countries के पास ही है।
1) मुश्किल है की ओबामा आगे आने वाले समय मे कोई ऐसा काम करे कि नोबेल पुरश्कार कमेटी को सोचना पडे की जल्दबाजी मे दे दिया गया, नोबेल के बाद तो बहुत मुश्किल
2 ) अभी युद्ध के चान्स कम है
3 ) वो मुश्लिम है, इसलिए मिडिल ईस्ट मे उसके कट्टर विरोधी नही है ।
4) black है इसलिए africa मे सम्मानित है, kenya का है infact so good candidate जिस पर दाव लगाया जा सकता है ।
हमेसा जरूरी नही कि nobel 80 साल वालो को ही मिले ,काम करने के बाद । यहा इसको पता है कि क्या करना है । भारी दबाब होगा और सच कहा जाये तो हम लोगो मे से कई लोग नही जानते की मन्डेला ने क्या किया, याशिर अराफ़ात ने क्या किया, अल गोरे ने क्या किया ये लोग famous तब होते है जब नोबेल मिल जाता है.....फ़िर हम अपना gk gain कर लेते है और भूल जाते है कि क्यू मिला । यहा हम नजर रखेगे और देखेगे वह कर क्या रहा है । हम Analyse कर पायेगे , सफ़ल हुआ तो भी और नही हुआ तो भी । nobel committe कभी भी rule change करके वापस ले सकती है prize ,सोचो वह कितना shamefull होगा । अल गोरे को environmental concern के लिये मिला ।जो मन्डेला ने किया उसका foundation गान्धी जी डालकर आये थे ।कभी- कभी peace war से भी आती है इसलिये अहिन्सा ही एक मात्र हथियार नही । Terrorist को खतम करना है। Peace लाना है । उनको खत्म करना होगा और विचारधारा को बदलना होगा। य़ासिर अराफ़ात ने युद्ध का सहारा लिया । diplomatic level पर बहुत कुछ होता है ।
रजनीश शुक्ला:
ओबामा अभी young है। कल को कुछ गलत कर गये तो नोबेल का क्या सम्मान । पाकिस्तान मे drone हमले कराये गये ओबामा के शाशन मे तो पता चला चन्द आतन्कअवादियो को मारने के चक्कर मे कई बेकसूरो की जान गयी ।हमले पूरे के पूरे गान्व मे हुए ना कि केवल आतन्कवादी शिविर मे । उन घरो के सदस्य जिनके रिस्तेदार मरे गये ,अनाथ बच्चे जब सुनेगे तो सोन्चेगे दुनिया मे कुछ भी होता है, क्या मेरे पिता का कातिल Nobel का हकदार है ? एक दोशी को सजा देने के लिये १०० निर्दोश ना मारे जाये । अब बच्चे मारे गये वो तो आतन्की नही थे । यह दर्द हम नही समझ सकते, वो जिनके अपने मारे गये वही समझेगे और वही हन्सेगे कि क्या दुनिया है जिसने मेरे अब्बा जान को मारा और मेरा घर उजाड दिया उसे नोबेल । वही आतन्कवादी बनेगा । उसे उकसाया जायेगा और फिर एक और ११ सितम्बर होगा । यही चलता रहेगा , यही दुनिया है । कई ओसामा बिन लादेन तैयार होन्गे । य़े आतन्क को खतम करने का तरीका भी अजीब है कि जीवित आतन्की को खतम करो और एक भले आदमी के भीतर आतन्कवाद का बीज बो दो और जिसने ये सब किया उसे शान्ति का नोबेल ।
कई बार nobel expectations पर दिया जाता है । वो young है और उसके plans बहुत innovative है। उसके पास ४ साल का मौका है । हमेशा साप निकल जाने पर लकीर पीटना समझदारी नही । दुनिया के 6 अरब लोगो को अब उससे उम्मीद है । यदि नोबेल कमेटी ने थोडी तत्पर्ता दिखाय़ी होती तो महात्मा गान्धी नोबेल से वन्चित नही रहते। मतलब शान्ति के मसीहा को नोबल नही मिला । यह आश्चर्यजनक है। किन्तु नोबेल प्राइज़ का रुल है कि मरने के बाद नही देते, मरने के पहले कोई recognize नही कर पाया । मन्डेला उनके पदचिन्हो पर चलकर नोबेल पा गये गान्धी जी को नही मिलना बहुत बडा आश्चर्य है । जिसने दुनिया को एक नयी सोच दी उसको नोबेल नही मिला। पहले तो लोग मानते थे कि "india is country of snake charmers" मतलब की सपेरो और करतब दिखाने वालो का देश। कलाम ने बडा काम किया है अभी उनको भी नही मिला। indegeneous chryogenic engine बनाया । दुनिया मे सिर्फ़ 5 countries के पास ये capability है। खुद का रोकेट launching station भी 5 countries के पास ही है।
1) मुश्किल है की ओबामा आगे आने वाले समय मे कोई ऐसा काम करे कि नोबेल पुरश्कार कमेटी को सोचना पडे की जल्दबाजी मे दे दिया गया, नोबेल के बाद तो बहुत मुश्किल
2 ) अभी युद्ध के चान्स कम है
3 ) वो मुश्लिम है, इसलिए मिडिल ईस्ट मे उसके कट्टर विरोधी नही है ।
4) black है इसलिए africa मे सम्मानित है, kenya का है infact so good candidate जिस पर दाव लगाया जा सकता है ।
हमेसा जरूरी नही कि nobel 80 साल वालो को ही मिले ,काम करने के बाद । यहा इसको पता है कि क्या करना है । भारी दबाब होगा और सच कहा जाये तो हम लोगो मे से कई लोग नही जानते की मन्डेला ने क्या किया, याशिर अराफ़ात ने क्या किया, अल गोरे ने क्या किया ये लोग famous तब होते है जब नोबेल मिल जाता है.....फ़िर हम अपना gk gain कर लेते है और भूल जाते है कि क्यू मिला । यहा हम नजर रखेगे और देखेगे वह कर क्या रहा है । हम Analyse कर पायेगे , सफ़ल हुआ तो भी और नही हुआ तो भी । nobel committe कभी भी rule change करके वापस ले सकती है prize ,सोचो वह कितना shamefull होगा । अल गोरे को environmental concern के लिये मिला ।जो मन्डेला ने किया उसका foundation गान्धी जी डालकर आये थे ।कभी- कभी peace war से भी आती है इसलिये अहिन्सा ही एक मात्र हथियार नही । Terrorist को खतम करना है। Peace लाना है । उनको खत्म करना होगा और विचारधारा को बदलना होगा। य़ासिर अराफ़ात ने युद्ध का सहारा लिया । diplomatic level पर बहुत कुछ होता है ।
रजनीश शुक्ला:
ओबामा अभी young है। कल को कुछ गलत कर गये तो नोबेल का क्या सम्मान । पाकिस्तान मे drone हमले कराये गये ओबामा के शाशन मे तो पता चला चन्द आतन्कअवादियो को मारने के चक्कर मे कई बेकसूरो की जान गयी ।हमले पूरे के पूरे गान्व मे हुए ना कि केवल आतन्कवादी शिविर मे । उन घरो के सदस्य जिनके रिस्तेदार मरे गये ,अनाथ बच्चे जब सुनेगे तो सोन्चेगे दुनिया मे कुछ भी होता है, क्या मेरे पिता का कातिल Nobel का हकदार है ? एक दोशी को सजा देने के लिये १०० निर्दोश ना मारे जाये । अब बच्चे मारे गये वो तो आतन्की नही थे । यह दर्द हम नही समझ सकते, वो जिनके अपने मारे गये वही समझेगे और वही हन्सेगे कि क्या दुनिया है जिसने मेरे अब्बा जान को मारा और मेरा घर उजाड दिया उसे नोबेल । वही आतन्कवादी बनेगा । उसे उकसाया जायेगा और फिर एक और ११ सितम्बर होगा । यही चलता रहेगा , यही दुनिया है । कई ओसामा बिन लादेन तैयार होन्गे । य़े आतन्क को खतम करने का तरीका भी अजीब है कि जीवित आतन्की को खतम करो और एक भले आदमी के भीतर आतन्कवाद का बीज बो दो और जिसने ये सब किया उसे शान्ति का नोबेल ।
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