Monday, January 18, 2010

जन जन का बस एक ही नारा : सहज उपायों से स्वच्छ हो पर्यावरण हमारा


लेखक: रूपेश पाण्डेय
समीक्षक एवं अतिथि लेखक ,
भारत नव निर्माण (Evolving New India)
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बात है मेरे हालिया पैत्रिक निवास भ्रमण की , सदैव की तरह इस बार भी नाना प्रकार के विचार कौंधे और सदैव की भाँति मस्तिष्क के किसी कोने मे विलुप्त हो जाते किंतु तभी भारत नव निर्माण(Evolving New India)का यह चिठ्ठा स्मरण हो आया जो मेरे विचारों को शरण देने का उपयुक्त स्थल प्रतीत हुआ। बात आयी गयी हो जाती यदि कुछ दिन पूर्व मैने अपने एक अति वरिष्ठ अधिकारी से इस विषय मे आधिपत्य के साथ एक प्रभावपूर्ण चर्चा न की होती। अधिकारी हाल ही मे मुंबई मे एक सम्मेलन मे आमंत्रित किये गये थे, अपना श्वेत पत्र प्रस्तुत करने के लिये, विदित हो कि मेरी संस्था के एक उच्च पदाधिकारी होने के साथ साथ वे जाने माने पर्यावरणविद व पर्यावरण की रक्षा मे संलग्न एक कर्मठ कार्यवाहक भी हैं, कई बार चर्चा के दौरान वो इतने भावुक हो उठते हैं जितना कोई अपनी अतिप्रिय निकटस्थ की क्षति से भी न होता होगा, खैर चर्चा का सार था - "क्या ग्रामीण भारतीय जीवन शैली प्रकृति (Nature) के समीप है?" । "क्या पश्चिम जगत वापस उसी जीवन शैली के लिये करोंड़ो के अनुसंधान कर रहा है , जो हमारी दिनचर्या में शामिल है?"
मेरे वरिष्ठ ने कई प्रभावी तर्क प्रस्तुत किये जिसका सार यह था कि एक आम ग्रामीण भारतीय की दैनिक जीवन शैली में कई ऐसी बातें शामिल हैं जिन्हें पश्चिम के वैज्ञानिक एक अनुसंधान का परिणाम मानते हैं । गोबर से घर लीप कर उसे कीटाणुरहित रखने की बात हो , या अरहर के झाड़ का ईंधन और बर्तन धोने में होने वाला प्रयोग, दक्षिण भारत में नारियल के वृक्षों का भी ऐसा ही सदुपयोग किया जाता है । खाने में,तेल निकालने में,रस्सी बानाने में, ईंधन के रुप में, एक एक भाग का अधिकतम उपयोग, जिसे वैज्ञानिक "optimum utilization of resources" बोलते हैं और न जाने कितने सिद्धांत प्रतिपादित करके नोबेल जीत चुके हैं, चर्चा लंबी चली और काफी ज्ञानार्जन भी हुआ।
मेरे हालिया भ्रमण के दौरान जो बातें मैंने ध्यान दी उसमें एक मेरे लिये भी नयी और रोचक थी, हम रीवा से शहडोल की तरफ जा रहे थे,राज्य सरकार के कुछ प्रशंसनीय कार्यों में एक रीवा-शहडोल मार्ग है । पुराने समय मे जिस दूरी को तय करने में नौ घण्टे लग जाते थे आज वही आराम से तीन से चार घण्टे में तय होती है । रास्ते भर मैं गौर करता रहा, मार्ग में कुछ सूखे झाड़ पड़े थे । पहले लगा कि किसी वाहन से गिर गये होंगे, किंतु तकरीबन पचास kms तक देखने के बाद उत्सुकतावश मैंने चालक से पूछा "भाई ये झाड़ बीच सड़क में किसने डाले?" । तब चालक ने हँस कर कहा - लगता है आप बड़े शहर से आये हो, ये एक प्रकार की जंगली जड़ी -बूटी का झाड़ है जिसे "चकौड़ा" कहते हैं, इसके बीज औषधि के रुप में काम आते हैं, जब मार्ग से वाहन निकलते हैं तो इनके ऊपर से निकालने पर बीज स्वयम बाहर आ जाते हैं, जिसका तेल निकाला जाता है और दवा के रुप में प्रयोग होता है । "चकौड़ा" इस शब्द को मैंने सुना तो था किंतु अर्थ नहीं जानता था । एक पुरानी काहावत है - "रहें चकौड़ा में और बातें करें व्रंदावन की" । अब अर्थ समझ आया, लेकिन यहाँ "चकौड़ा" व्रंदावन से अधिक सम्माननीय लगा मुझे।
"वाह!" क्या दिमाग़ लगाया है, सुबह झाड़ रखकर जाओ शाम को चुने हुऐ बीज ले जाओ, एकदम "common sense" हो सकता है। कोई अमेरिकन कंपनी इस काम के लिये भी लाखों की मशीन बना दे और हम उसे आयात भी कर लें, किंतु ज़रा सा "common sense" लगाया जाये तो हर बात का सरल उपाय उपलब्ध है, और "common" तथा सरल बनाते हुऐ बात को संबंधित कर देते हैं युवाओं में बड़ी लोकप्रिय हुई फिल्म "3 idiots" से, सही मायनों में वहाँ भी सोचने के कई बड़े सरल और सहज तरीके बताये गये हैं, अफसोस यह रहा कि बहुतेरों ने फिल्म से यह सीख ले ली कि "आधुनिक शिक्षा प्रणाली बकवास है" और उसके विरोध मे झंडा खड़ा करो।

बड़ी सोच में इस तरह दब गये हम,
न सोचा किये और रस्ते भी होंगे,
गये भागते, चीरते,लड़खड़ाते ,
न सोचा किये, जो उलझते भी होंगे,
और एक आदमी जानता फिर भी चुप था,
सब हँसते मिलेंगे,
जो सोचा किये और रस्ते भी होंगे.
"चकौड़ा -विज्ञान" से मंत्रमुग्ध एक ढाबे में रुका ही था कि देखने को मिल गया "विज्ञापन" का सस्ता,सरल,आसान और बहुत प्रभावी उपाय, छायाचित्र संलग्न है और स्वयं ही कहानी बयान कर रहा है।


2 comments:

Rupesh Pandey said...

It has come out well :-)

Unknown said...

yeah... It's very important to keep our natural environment clean and healthy. day by day increasing air polution, hole in ozone layer, sewerage in rivers like ganga, narmada, sound polution are sweet poision for human beings. It's very much necessary to spread awarness regarding these things, otherwise whole world will suffer a lot and next generation will pay a lot in upcomming days. Good work by Bharat nav Nirman. Best wishes...